SINGRAULI. 6 जुलाई 2022 को....... नगरीय निकाय निर्वाचन का.... मतदान रूपी फाइनल मुकाबला, हमेशा की तरह रोचक रूप लेते हुए..... दलगत नीतियों को बला- ए-ताक़ रख.... जातीय समीकरण की ओर ही केंद्रित होता प्रतीत हो रहा है। सबसे दिलचस्प नजारा महापौर निर्वाचन को लेकर ही है। 2 लाख 3 हजार 3 सौ 75 मतदाता संख्या वाली इस नगर निगम सिंगरौली की अनारक्षित सीट पर इस बार निर्णायक- बहुसंख्यक मतदाता ब्राह्मण वर्ग को माना जा रहा है। लिहाजा बीजेपी व कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी जहां परशुराम का चरण वंदन करने में कोई शर्म - संकोच नहीं कर रहे हैं, और जीतने के बाद भगवान परशुराम का मंदिर बनाने की घोषणा करते जा रहे हैं। वहीं बसपा के महापौर प्रत्याशी अपने सजातीय दूसरे बहुसंख्यक साहू समाज के मतदाताओं को थोक के भाव अपना जान जीत सुनिश्चित मान रहे हैं। रही आम आदमी की रानी अग्रवाल की बात तो उनकी नजर पहले से ही उक्त सभी दलों के असंतुष्ट मतदाताओं पर गडी है, जो अवसर को भुनाने में कोई चूक करती नजर नहीं आ रही है।
नहीं साध पाए स्टार प्रचारक
यूं तो दर्जन भर महापौर प्रत्याशी मैदान में हैं लेकिन मुकाबले में कांग्रेस, बीजेपी बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी कुल जमा चार प्रमुख दल ही नजर आ रहे हैं। जन चर्चाओं में भी इन्हीं चार का नाम शामिल है। शिवसेना के भास्कर मिश्रा, जन कल्याण पार्टी के लाल बाबू कुशवाहा, सपा के विनय यादव सहित अन्य सभी प्रत्याशियों को या तो दौड़ से बाहर माना जा रहा है या महज वोट-कटवा की भूमिका में देखा जा रहा है। जैसा कि विदित है कि अनारक्षित सिंगरौली के इस चुनाव में चारों प्रमुख दलों में से कांग्रेस ने अरविंद सिंह ( क्षत्रिय - सामान्य ) बीजेपी ने चन्द्रप्रताप विश्वकर्मा ( लोहार - पिछड़ा वर्ग ), बसपा ने वंशरूप शाह ( तेली - पिछड़ा वर्ग ) एवं आप ने श्रीमती रानी अग्रवाल ( बनिया अग्रवाल - सामान्य) को महापौर प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा है। टिकट वितरण का असंतोष कांग्रेस व बीजेपी के उम्मीदवारों को शुरू से ही झेलना पड़ रहा है जो अभी तक कायम है। असंतोष की वजह से वोटिंग के दौरान इन दोनों दलों के लिए जबरदस्त भितरधात की संभावना जताई जा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि वोटिंग के दिन होने जा रहे भितरधात रुपी इस डैमेज को कन्ट्रोल कर पाने में दोनों दलों के स्टार प्रचारक भी असफल साबित हुए हैं। उधर कांग्रेस - बीजेपी का यही डर आप प्रत्याशी की सबसे बड़ी ताकत भी बनता माना जा रहा है।
नाराज ब्राह्मण किधर लेगा करवट
चर्चाओं पर भरोसा करें तो यही दोनों दल नहीं बल्कि बसपा के भी असंतुष्टों का रुझान एकमात्र विकल्प के तौर पर आप ही है। चूंकि सर्वाधिक बहुसंख्यक मतदाताओं में ब्राह्मण वर्ग (नगर निगम में मतदाता संख्या लगभग 44 हजार) है। इस वर्ग का चारों प्रमुख दलों में कोई भी महापौर प्रत्याशी मैदान में नहीं है ऐसे में इस पर सबकी नजर केन्द्रित होना स्वाभाविक है। लेकिन टिकट वितरण के दौरान बीजेपी और कांग्रेस द्वारा के द्वारा नजरअंदाज किए जाने से नाराज यह वर्ग भी इस बार सोच समझ कर अपना पॉलिटिकल स्टेप उठाने के मूड में है। इस वर्ग के कुछ लोग जहां खुलकर आप के सपोर्ट में आ गए हैं वहीं अधिकांश अभी चुप्पी साध अभी भी प्रत्याशियों का ब्लड प्रेशर बढ़ाने का मजा ले रहे हैं। कई ऐसे भी हैं जो समाज की बैठक दर बैठक कर किसी एक के पक्ष में वोटिंग करने की योजना बना रहे हैं। यही प्रमुख वजह है कि सभी प्रत्याशी विशेष कर बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशी परशुराम की चरण वंदना में लगे हुए हैं।
साहू समाज के पास शाह विकल्प
दूसरे नंबर का सर्वाधिक मतदाता संख्या वाला साहू समाज ( लगभग 37 हजार) का हाल सिर्फ इस मायने में ब्राह्मण समाज से अलग है कि इनके पास बसपा प्रत्याशी वंश रूप शाह के रूप में स्वजातीय विकल्प मौजूद है। यदि यह वर्ग बसपा के पक्ष में लामबंद हो गया और ब्राह्मण वर्ग विघटित हो गया तो एक बार फिर से नीली आंधी आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। साहू समाज को बसपा के लिए लामबंद होने की संभावना को इसलिए भी बल मिलता प्रतीत हो रहा है कि भले ही इस समाज के चंद लोग बीजेपी - कांग्रेस के साथ घूम रहे हैं लेकिन प्रत्याशी चयन की नाराजगी भरपूर नजर आ रही है, इनके पास विकल्प भी है सो चूक करने की कोई गुंजाइश नहीं है।
बाकी टुकड़ों में टूटेंगे
शेष अन्य में थोक में वोटिंग करने वाला समाज बैसवार है (24 हजार)जो विधायक राम लल्लू वैश्य के सजातीय होने के चलते बीजेपी के पक्ष में जा सकता है लेकिन इसके एकमुश्त जाने की संभावना बहुत ही कम है। इसके पीछे भी बहुत सारे नए पुराने फैक्टर प्रभावशील है। अब बचते हैं क्षत्रिय (11 हजार), लेकिन यहाँ भी आपसी तनातनी चलती रहती है, कई गुट हैं ऐसे में ये कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में कितना एकजुट हो सकते हैं अभी ये बता पाना जरा मुश्किल है। 8 हजार मतदाता संख्या वाला मुस्लिम समाज एक जुट नहीं दिख रहा है। यह वर्ग खुलकर कांग्रेस व आप के साथ घूमता दिख रहा है। बनिया समाज (14 हजार) भी आप के साथ ही अधिक दिख रहा है। शेष और भी जातियां हैं जो टुकड़े -टुकड़े में दौड़ से बाहर चल रहे अपने अपने सजातीय प्रत्याशियों के साथ है। लिहाजा ऐसे में अभी से यह यह कह पाना जरा मुश्किल है कि इस चुनाव का ऊंट किस करवट पलटी मारेगा, हां यह मुकाबला चार दलों के बीच ही है यह सुनिश्चित है।